भारतीय समाज में स्वतंत्रता के बाद से ही जागरूकता की कमी देखी जाती है। शायद इसी वजह से हम विकसित देशों से पीछे रह जाते हैं! क्या आज कोई कह सकता है की कोई देश विकसित है पर वहां के निवासी जागरूक नही हैं? बेशक नहीं! क्योंकि विकास अपने साथ जागरूकता लता है और ये इसी जागरूकता से अपनी सतत प्रक्रिया के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है। विकसित देशों ने अपनी वैज्ञानिक उन्नति वैज्ञानिक प्रबुद्धता से ही प्राप्त की है। कुछ लोग दावा करते हैं की अधिकांश विकसित देशों ने ये ताकत और प्रतिष्ठा अपनी वित्तीय समृद्धि से प्राप्त की है।
यह एक तथ्य है क्योंकि समृद्धि अपने साथ ताकत, सम्मान और सुरक्षा लेकर आती है। सुरक्षा से हमारा मतलब है की जहां जीवन और जैविक गतिविधियों पर कोई खतरा न हो। जहां कोई भी तत्व आपके काम काज में बाधा न उत्पन्न कर सके। आपको वास्तविक स्वतंत्रता और संप्रभुता प्राप्त हो और आपके सभी फैसले उन्मुक्त हों। आप के पास बोलने की आजादी हो। वित्तीय समृद्धि शक्ति लाती है और समृद्ध और संप्रभु व्यक्ति या देश के शब्दों का पालन होता है। आज के दौर में हम जो स्वतंत्रता देख रहे हैं वो यूरोपीय उदारवाद की देन है। 19वीं शताब्दी में यूरोप और अमेरिका पूरे विश्व पर हावी थे। क्योंकि ऐसे देशों ने गजब की तकनीकी उन्नति प्राप्त कर ली थी इसलिए ये पूरे विश्व से कच्चा माल उठा कर उससे जरूरत की चीज़े बनाते थे और उन्हें बेच कर धनोपार्जन करते थे। इस ज्ञान से इन्होंने अपने को समृद्ध कर लिया और अपना विकास किया। फिर क्या था, जो इन देशों ने बनाया पूरे विश्व ने उसपर अमल किया। ज्ञान और जागरूकता ही थी जो इन देशों को बाकी दुनिया से अलग कर देती थी। जब भारत आजाद हुआ तब इसने भी अपना राजनैतिक ढांचा और अपना संविधान इन्ही देशों से सीख लेते हुए बनाया। संविधानवाद, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और विधि शासन भी भारत ने इन्ही यूरोपीय देशों व अमेरिका से प्राप्त किया।
ये सभी शब्द भारतीयों के लिए नए थे क्योंकि इनकी उत्पत्ति अलग देशों में हुई थी जिनकी संस्कृति भारत की संस्कृति से भिन्न थी। ऐसे कई शब्दों का सही अर्थ समझने के लिए बहुत स्पष्ट, सरल और सुबोध वर्णन की जरूरत थी। भारत के लोग अंग्रेजो द्वारा गरीब और शोषित बना दिए गए थे जिसके कारण इन्हें आसान भाषा में समझाया जाना चाहिए थे जिससे कानून उन्हें समझ आ सके। भारत के संविधान ने हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं।
इन मौलिक अधिकारों के बारे में जानने और इन्हे पूर्णतया प्राप्त करने के लिए हर नागरिक में कानून का ज्ञान, इसकी समझ, जानकारी और जागरूकता का होना बहुत जरूरी है। कानून का एक सिद्धांत है की कानून की अनदेखी होने पर क्षमा नहीं मिल सकती।
ये सिद्धांत मौजूदा कानून व्यवस्था में भी मान्य है और न्यायालय अपने फैसलों में ये जरूर देखता है की कही दोनो पक्षों के द्वारा किसी कानून की अनदेखी न की गई हो। हर नागरिक की ये जिम्मेदारी बनती है की उसे अपने देश के कानूनों का ज्ञान हो इसी वजह से कानून की जागरूकता और ज्ञान अत्यावश्यक हैं और प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को इन्हे प्राप्त करना चाहिए।
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