“एआई बनाने में सफलता मानव इतिहास की सबसे बड़ी घटना होगी। दुर्भाग्य से, यह आखिरी भी हो सकता है, जब तक कि हम यह नहीं सीख लेते कि जोखिमों से कैसे बचा जाए।”
- स्टीफन हॉकिंग
प्रस्तावना:-
सृष्टि में मानव ही एकमात्र प्राणी है जिसे बुद्धि और वाणी का वरदान प्राप्त है अपनी बुद्धि से कहा उसने अनंत अंतरिक्ष में अपना परचम फैराया है वहीं सागर की गठन गहराइयों को भी नापा है।अपनी मेधा से मनुष्य नित नव आविष्कार कर रहा है।इसी संदर्भ में आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता के गुण-दोषों पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ।
आगे हम यह भी जानेंगे कि अगर इसे अनियंत्रित या अनियमित छोड़ दिया जाए तो यह कितना खतरनाक हो सकता है।
परिचय:-
“असली सवाल यह है कि हम अधिकारों के कृत्रिम बुद्धिमत्ता विधेयक का मसौदा कब तैयार करेंगे? उसमें क्या शामिल होगा? और इसका निर्णय कौन करेगा?”
- ग्रे स्कॉट
इसका अर्थ यह है कि इंसान द्वारा कार्य करने कि प्रणाली को एक मानव निर्मित अत्याधुनिक मशीन को सौप देना।यह माना जाता है कि यह कार्य को मानव से कई गुना जयदा उचित एव् सटीक करता है।
फ़िलहाल की स्थिति में हमें इसका प्रारूप देखने को मिला हैं जो कई नज़रियो में सही और कई में ग़लत साबित हुया है ,आगामी समय में हमें इसका एक विकृत रूप देखने को मिल सकता है। यह तकनीक वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी है, जिसका अंत काफ़ी ख़तरनाक और चुनौतीपूर्ण है। इसका सदुपयोग मानव जीवन में क्रांतिकारी साबित हो सकता है जो कि इंसानी जीवन को सरल और आधुनिक बना देगा जिसमें हम बहुत जटिल कार्य त्रुटि रहित कर सकते हैं।
इसका सीमित और सटीक उपयोग ही मानव जीवन को उज्ज्वल और विकसित बना सकता है,परंतु थोड़ी सी छेड छाड़ से इसका विकराल रूप भी देखने को मिल सकता है यह मानव निर्मित सॉफ्टवेर कही मानव पर हुकूमत करने वाला एक तकनीकी राजा ना बन जाएँ,क्योंकि अब धीरे -धीरे यह स्वचालित होता जा रहा है, जो कही ना कही इंसानी नियंत्रण से हो जाता हैं।
अगर भारत की बात करे तो अभी इसका हम सीमित उपयोग ही कर रहे है जिसमें की चिकित्सा एवं उत्पादन शामिल है,भारत के ग्रामीण क्षेत्र जहाँ प्रशिक्षित मज़दूर की कमी हैं वहाँ इसे उपयोग कर रहे है। अगर समय रहते इसपे रोक ना लगाई तो यह तकनीक वह तानाशाह बनेगा जो इंसानों पर हुकूमत करेगा और इसका कोई तोड़ भी नहीं होगा।
इस तकनीक का एक चेहरा और है जिसमें यह इंसानी दिमाग़ को परख के हुबहू इंसानी हमशकल तैयार कर देता है जिसमें भावनात्मक सोच भी मिल सकती है यह अगर कारगर हो गया तो मानव सभ्यता पे एक गहन अंधकार दूर नहीं है। वरदान और अभिशाप में नाममात्र का फसला होता है जिसपे हमे मुख्यता ध्यान देना होगा अन्यथा तकनीकी विश्वयूद्धहोने की संभावना पूर्ण है।
लाभ
“यह देखना दिलचस्प होगा कि समाज कृत्रिम बुद्धिमत्ता से कैसे निपटता है, लेकिन यह निश्चित रूप से अच्छा होगा।"
- कॉलिन एंगल
हानि
सवाल?
सुरक्षा —आज भारत जो की अपनी सफलता कि सीढ़ियो की चढ़ाई में लगा है वहीं क्या ये तकनीक हमारी भारतीय सुरक्षा अवरोध पैदा नहीं कर सकती ,जिससे कई घातक परिणाम हो सकते है।
भ्रष्टाचार—यह समाज की वह जड़ है जो कई बर्षों से उग रही है क्या इस सॉफ्टवेर के आ जाने से भ्रष्ट लोगो को और ज़्यादा फ़ायदा देखेने को मिल सकता है जिससे आम जन को कई समस्या का सामना करना पड सकता है क्योंकि यह सॉफ्टवेर अभी सही ग़लत में भेद करने में असमर्थ है।
विज्ञान और तकनीक — भारत जो की एक विकसित देश की दोड में है पर अभी विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उतना आगे नहीं है वही इस तकनीक के आने से हमें कई कठिनाइयों सामना करना पड सकता है बात सिर्फ़ आधुनिक देश की नहीं बल्कि उसमें जो लोग रहते है उनकी है क्योंकि भारत में समाज कई वर्ग अभी इनसब चीज़ों से अनभिज्ञ हैं।
न्याय— भारतीय क़ानून व्यवस्था कभी जटिल और अनसुलझा है जिस कारण बस इसका एकदम सटीक और सीधा जवाब देने में यह तकनीक हमेशा सही नहीं रहती,और अभी यह तकनीक भारतीय क़ानून व्यवस्था से इक हद तक अनभिज्ञ है ।
एकांतता— यह सॉफ्टवेर गोपनीयता बनाया रखने में कितनी सक्षम है इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं।आज के इस दौर में मनव गोपनीयता बहुत ज़रूरी है वही इस सॉफ्टवेर का कुछ प्रतिशत ही है जो कि बहुत नुक़सान देयक और उचित नहीं जब समाज का हर एक वर्ग अपने सारे गोपनीय काग़ज़ और डेटा अपने मोबाइल में रखता है ।
भारतीय क़ानून प्रणाली
“असली सवाल यह है कि हम अधिकारों के कृत्रिम बुद्धिमत्ता विधेयक का मसौदा कब तैयार करेंगे? उसमें क्या शामिल होगा? और इसका निर्णय कौन करेगा?”
- ग्रे स्कॉट
भारतीय क़ानून प्रणाली जो की बहुत जटिल और अनसुलझी मानी जाती है वही इस सॉफ्टवेर के आने से लाभ से ज़्यादा हानि देखने को मिल सकती है ,अभी इस सॉफ्टवेर के पास क़ानून के हर एक सवाल का जवाब नहीं और एक बात सुरक्षा की भी आती है ,इस सॉफ्टवेर में गोपनीयता की कमी देखी गई है वही इस सॉफ्टवेर के आ जाने से न्याय में हो रही काग़ज़ी करवाही में तेज़ी और निचले इस्तर पे हो रहा भ्रष्टाचार को कम करने में कारगर साबित हो सकता है । न्याय प्रणाली में जोड़ घाटाने चलते रहते है जो की मेरे नज़रिये में एक मानव ही कर सकता हे,कई बार फ़ैसले भावनात्मक रूप से भी देखे जाते है जो यह सॉफ्टवेर करने में असमर्थ है।
क़ानून जो की हर सभ्यता का एक मूलभूत हिस्सा होता है वही इस तकनीक को बनाने सें पहले कोई क़ानून ना कोई नियम कुछ भी बनया गया जिसका दुष्परिणाम जाने देखने को मिल सकते है, अगर आज की परिस्थिति में हम देखे को इसका कोई नियम क़ायदा नहीं है जो चाहे जैसे चाहे इस मशीन का उपयोग कर सकता है।
और ये तकनीक जो कि अंतरराष्ट्रीय रूप से काम कर रही है,तो मेरे अनुसार इसको बनाने के पहले कई बैठक और विचार तो अनिवार्य है, अंतरराष्ट्रीय क़ानून बनाने के लिय कई अंतरराष्ट्रीय संधि और विचार जो देशों के बीच के अपराधों को रोकने में सक्षम होते है। इस तकनीक से कोई भी दूसरे देश से अपराध करने में समर्थ होता है,फिर इसकी सजा किसे देंगे और कहा और कितनी इसका जवाब अभी हमारी क़ानूनी प्रणाली में नहीं है इस मशीन को उपयोग में लाने से पहले क़ानून और इसके उपयोग पे प्रतिबद्धता के नियम अथवा रोकथाम के उपाय अनिवार्य है। तब ही यह मशीन कारगर और सही तरीक़े से इस्तेमाल में लायी जा सकती है।
भारत और ए आई
भारत विविधता और समृद्धि का देश है,जहा हर वर्ग के इंसान रहते है,पर इसका एक हिस्सा तकनीक और शिक्षा में बहुत पिछड़ा हुया है,जो की इस तकनीक या अन्य तकनीकी क्रांति के के लिय शायद तैयार नहीं है।जो की ध्यान देने योग्य है,जिसका ध्यान हमारी सरकार, वरिष्ठ और विशेषज्ञों को देखना पड़ेगा। भारत जो की विश्वगुरु बनने कि दौड़ में है, वही इसे अभी काफ़ी सुधार की ज़रूरत भी है,हम सिर्फ़ दो क्षेत्रों पे इसका उपयोग कर रहा है चिकित्सा और उत्पादन। चिकित्सा में भारत ने गुलोकोमा जैसे लाइलाज बीमारी का इलाज बखूबी निकाल लिया है वहीं उत्पादन के क्षैत्र में कहा भारत के ग्रामीण इलाको में जहां प्रशिक्षित मज़दूरो की कमी थी वहाँ इसे उपयोग में लाया जा रहा है।
अगर भारत आने वाले समय में अपने आप को विश्वगुरु देखना चाहता है तो उसे अपने तकनीकी और उत्पादन के क्षेत्र में बल देना पड़ेगा मशीन कार्य करना पड़ेगा जिससे गलती की गुंजाइश कम हो, और यह सब बहुत सूक्ष्मता और समझदारी से करना होगा क्योंकि भारत के लोग अभी तकनीकी क्रांति के लिये तैयार नहीं है, अगर हमने इसका उपयोग समझदारी और साझेदारी से किया तो इसके परिणाम देखने लायक़ होगे जो की पूरा विस्व देखेगा।इसका सही और सीमित उपयोग ही कारगर है वरना,वरदान को अभिशाप बनते देर नहीं लगती और यह अभिशाप सुधार योग्य नहीं होगा।
निष्कर्ष
“Science is a good Servant But A Bad Master”
अगर रोजमर्रा के जीवनशैली में देखा जाए तो इसका उतना उपयोग नहीं है जीतना की बताया गया है। इस तकनीक को समझने के पहले इसकी थोड़ी कहानी जानते है,आज की युवा पीढ़ी जो इसको बीसवी शताब्दी कि सबसे बड़े आविष्कारो में देखती है वही ये असल में सन् 1950 की खोज है तब से अभी तक बस ये अनियंत्रित फैलती चली जा रही है,और अभी तक इसमें करोड़ों अरबों रुपए खर्च किये जा चुके है। स्टीफ़न हॉकिंग जो की एक महान इंसान के साथ एक महान वैज्ञानिक भी थे उन्होंने इस सॉफ्टवेर को मानव विनाशी बताया था और इसके रोकथाम का आदेश दिया था, और आज की बात देखे तो हर बड़ी कंपनियाँ इस तकनीक को अपने ऐप और सिस्टम में डाल रही है बस इसकी बढ़ती हुई लोकप्रियता का कारण यही है और कुछ नहीं हम इंसानों में इसका उपयोग उतना हो है जितना आर्टिफिशियलपोधो का यह सॉफ्टवेर ऐप के ज़रिए हमारे जीवन की हर एक चीज़ जान लेता है जो की आने वाले समय के लिय बहुत नुक़सानदायक है क्योंकि हम इंसान जो की अपनी हर एक चीज़ अपने फ़ोन में रखते है वही ये तकनीक सब देखती है जो की संरक्षण पे सवाल है।
कई कंपनी जैसे फ़ेसबुक,स्नैपचैट,ट्विटर आदि के चैटबॉक्स में हम इसे देख सकते है जो की हमसे बात करता है और हर सवाल का जवाब देता है,पर इसके दुष्परिणाम देख के कई कंपनीयो ने इसे अपने सिस्टम से हटा भी दिया जैसे ट्विटर ,इसके संस्थापक ईलॉन मस्क उनका यह कहना था कि यह सॉफ्टवेर धीरे धीरे स्वचालित होता जा रहा था जो की गोपनीयताओं पर आवाज़ थी।यह मानव निर्मित सॉफ्टवेर जैसे हीं सिस्टम में जाता है ,कई जगह ऐसा देखा गया है कि यह स्वचालित हो जाता है। अगर विद्यार्थीयों के संदर्व में बात करे तो यह अभिशाप के रूप में देख सकते है छात्र बिना सोचे सीधा जवाब ले लेते है जो कही ना कही यह मानव क्षमता की रोकथाम है। अगर एक विस्तृत रूप में देखा जाए तो आने वाले समय में यह सॉफ्टवेर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र बेरोज़गार का कारण हो सकता है, क्योंकि जो काम सैकड़ो इंसान मिलके भी नहीं कर सकते वही यह तकनीक आसानी और कम समय में कर सकती है। हाल ही में अमेरिका में एक सिम्युलेटर प्रशिक्षण के दौरान एक एआई ड्रोन जो की सेना के लिये तैयार हो रहा था उसने प्रशिक्षण कर्ता की बात मानने से इंकार कर दिया और उसके ऊपर हमला कर दिया, यह बात सोचने वाली है की मानव निर्मित चीजे मानव की बात मानने से इंकार के दे रही है कही ये एक घंटी तो नहीं है कि हमें इसे यही पे रोक देना चाहिए,नहीं तो यह तकनीकी परमाणु सिद्ध होगा और मानव संरचना पे सवाल उठाएगा।
अगर हम बात करे की क़ानून के क्षैत्र में तो मेरे अनुसार इसका उपयोग ना के बराबर है,ये मान सकते है कि काग़ज़ी कामो उपयोगी हो सकता है परंतु बाक़ी की जगह नहीं क्योंकि क़ानूनी व्यवस्था भावनात्मक युक्तियों पर निर्भर होती है हर गुनाह की सज़ा किताबो मे से नहीं दी जा सकती कई बार न्यायाधीश को भावनात्मक फेसले भी लेने होते है जो की यह सॉफ्टवेर आज की परिस्थिति में सक्षम नहीं है, पर अगर सोच भी लो कि यह सॉफ्टवेर अगर भावनात्मक तरीक़े से सोचने लगा तो यह इंसानी जीवन को बिलकुल से ख़त्म कर देगा। इसका सही उपयोग अंतरिक्ष अनुसंधान में होना चाहिए जिसमें बारीकियों की बहुत ज़रूरत होती है और पूरा एक प्रयोजन छोटी सी इंसानी गड़बड़ी से बिफल हो जाता है। इसका उदाहरण भारत का चांद्रायण-२ जिसमें मामूली सी इंसानी कामी होने के कारण पूरा प्रयोजन बिफल हो गया|
अन्य उदाहरण यह मानव निर्मित सॉफ्टवेर कई जगह स्वचालित होते देखा है, चैट जीपीटी यह नाम आज के समय में छत्रों ने भगवान से ज़्यादा सुना है और लिया है इसकी मूल कंपनी ओपन ए आई है जिसके अभी कुछ समय पहले तक इलोन मस्क भी हिस्सेदार थे पर उन्होंने यह टिप्पडी दी थी की हमने इस सॉफ्टवेर को जैसे बनया था ये उस तरह काम ना करके ख़ुद व ख़ुद अपनी एक नई भासा में काम करता है।
“मशीन इंटेलिजेंस आखिरी आविष्कार है जिसे मानवता को बनाने की आवश्यकता होगी।"
- निक बोस्ट्रोम
लेखक:-
श्रेयांश छारी
डिपार्टमेंट ऑफ़ लॉ
प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड रिसर्च,इंदौर
चतुर्थ वर्ष
+91 7909909089
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